Rumored Buzz on naat lyrics in urdu pdf download
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naat lyrics
اَنَا فِیْ عَطَشٍ وَّسَخَاکَاَ تَمْ اے گیسوئے پاک اے ابرِ کرم
रुत्बा ये विलायत में क्या ग़ौस ने पाया है
माँगी हैं मैं ने जितनी दु'आएँ, मंज़ूर होंगी, मक़बूल होंगी
वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर हो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है सितारों से ये चाँद कहता है हर-दम तुम्हें क्या बताऊँ वो टुकड़ों का 'आलम इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो नन्हा सा असग़र, वो एड़ी रगड़ कर यही कह रहा था वो ख़ैमे में रो कर ऐ बाबा !
जो तलातुम बने हुए थे, सुहैल ! वो किनारे सलाम कहते हैं
हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन की तस्वीर सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है हम ने आँखों से देखा नहीं है मगर उन का जल्वा तो सीने में मौजूद है जिस ने ला कर कलाम-ए-इलाही दिया वो मुहम्मद मदीने में मौजूद है फूल खिलते हैं पढ़ पढ़ के सल्ले-'अला झूम कर कह रही है ये बाद-ए-सबा ऐसी ख़ुश्बू चमन के गुलों में कहाँ ! जो नबी के पसीने में मौजूद है हम ने माना कि जन्नत बहुत है हसीं छोड़ कर हम मदीना न जाएँ कहीं यूँ तो जन्नत में सब है मदीना नहीं और जन्नत मदीने में मौजूद है छोड़ना तेरा तयबा गवारा नहीं सारी दुनिया में ऐसा नज़ारा नहीं ऐसा मंज़र ज़माने में देखा नहीं जैसा मंज़र मदीने में मौजूद है ना'त-ख़्वाँ: महमूद जे.
मेरा दामन तो गुनाहों से भरा है, अल्ताफ़ !
रुत्बा ये विलायत में क्या ग़ौस ने पाया है अल्लाह ने वलियों का सरदार बनाया है है दस्त-ए-'अली सर पर, हसनैन का साया है मेरे ग़ौस की ठोकर ने मुर्दों को जिलाया है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! लाखों ने उसी दर से तक़दीर बना ली है बग़दादी सँवरिया की हर बात निराली है डूबी हुई कश्ती भी दरिया से निकाली है ये नाम अदब से लो, ये नाम जलाली है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर !
वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो सोने से कंकर, वो चाँदी सी मिट्टी नज़र में बसाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो पूछा नबी ने कि कुछ घर भी छोड़ा तो सिद्दीक़-ए-अकबर के होंटों पे आया वहाँ माल-ओ-दौलत की क्या है हक़ीक़त जहाँ जाँ लुटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जिहाद-ए-मोहब्बत की आवाज़ गूँजी कहा हन्ज़ला ने ये दुल्हन से अपनी इजाज़त अगर हो तो जाम-ए-शहादत लबों से लगाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है सितारों से ये चाँद कहता है हर-दम तुम्हें क्या बताऊँ वो टुकड़ों का 'आलम इशारे में आक़ा के इतना मज़ा था कि फिर टूट जाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है वो नन्हा सा असग़र, वो एड़ी रगड़ कर यही कह रहा था वो ख़ैमे में रो कर ऐ बाबा !
याद करते हैं तुम को शाम-ओ-सहर, दिल हमारे सलाम कहते हैं
●यक़ीनन वो जन्नत का हक़दार होगा, नात शरीफ हिंदी में लिखी हुई
”نعت“ اردو کی وہ مقبول ترین صنفِ شاعری ہے جس میں حضور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی تعریف و توصیف بیان کی جاتی ہے۔ یہ (نعت) عربی زبان کا لفظ ہے جس کے معنی وصف و خوبی اور تعریف و توصیف کے ہیں لیکن عرف عام میں نعت، رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی ثناء و ستائش اور تعریف و توصیف بیان کرنے والی منظومات کو کہا جاتا ہے۔ اس کورس میں ہم اردو زبان میں لفظ (الف) سے لے کر لفظ (ی) تک کے حروف سے شروع ہونے والی تمام نعتوں کی لیرکس پیش کر رہے ہیں۔
चमन में कलियों के रुख़ पे हुस्न-ओ-जमाल आया, कमाल आया !
ऐ ज़हरा के बाबा ! सुनें इल्तिजा मदीना बुला लीजिए कहीं मर न जाए तुम्हारा गदा मदीना बुला लीजिए सताती है मुझ को, रुलाती है मुझ को ये दुनिया बहुत आज़माती है मुझ को हूँ दुनिया की बातों से टूटा हुआ मदीना बुला लीजिए बड़ी बेकसी है, बड़ी बे-क़रारी न कट जाए, आक़ा ! यूँही 'उम्र सारी कहाँ ज़िंदगानी का कुछ है पता मदीना बुला लीजिए ये एहसास है मुझ को, मैं हूँ कमीना हुज़ूर ! आप चाहें तो आऊँ मदीना गुनाहों के दलदल में मैं हूँ फँसा मदीना बुला लीजिए मैं देखूँ वो रौज़ा, मैं देखूँ वो जाली बुला लीजे मुझ को भी, सरकार-ए-'आली !